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मानव धर्म

नहीं आवश्यक परिक्रमा देवालयों के स्वर्णिम विग्रह की। नहीं आवश्यक भक्ति साधना किसी कुपित क्रोधी ग्रह की। नहीं आवश्यक है कि तुम तीर्थ यात्रा करते घूमो। नहीं आवश्यक है कि तुम मस्जिदों की चौखट चूमो। किसी धर्म ग्रन्थ का पाठ भी नहीं आवश्यक है कभी। गंगा यमुना का घाट भी नहीं आवश्यक है कभी। मानव हित में महान पुण्य, परोपकार का कर्म है। भूखे को रोटी देना ही सच्चा मानव धर्म है। ----> लक्ष्मण बिश्नोई "लक्ष्य"