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मानव धर्म

नहीं आवश्यक परिक्रमा देवालयों के स्वर्णिम विग्रह की। नहीं आवश्यक भक्ति साधना किसी कुपित क्रोधी ग्रह की। नहीं आवश्यक है कि तुम तीर्थ यात्रा करते घूमो। नहीं आवश्यक है कि तुम मस्जिदों की चौखट चूमो। किसी धर्म ग्रन्थ का पाठ भी नहीं आवश्यक है कभी। गंगा यमुना का घाट भी नहीं आवश्यक है कभी। मानव हित में महान पुण्य, परोपकार का कर्म है। भूखे को रोटी देना ही सच्चा मानव धर्म है। ----> लक्ष्मण बिश्नोई "लक्ष्य"

सपनों को मरने मत देना

तेज आँधियों को दिये के, प्राण कभी हरने मत देना। सपनों को मरने मत देना।। गगरी फूटी, नई बनाओ। माला टूटी,फिर से सजाओ। नन्हें कदम जब बढ़ना चाहें, पकड़ अंगुली, हिम्मत बढ़ाओ। चलना सीख रहे बच्चे को गिरने से डरने मत देना। सपनों को मरने मत देना।। धूप नहीं,उजियारा देखो। दुनिया से कुछ न्यारा देखो। तूफानों से कांपे जगत जब, पार कहीं किनारा देखो। भँवरों से भी भिड़ जाने दो, कश्ती खड़ी करने मत देना। सपनों को मरने मत देना।। ----> लक्ष्मण बिश्नोई 'लक्ष्य'

मेरे जीवन की हिस्सेदार हर नारी को समर्पित

जगती में जब मेरा जीवन, आहत अकुलाए आघातों में। क्लांत कलेजा कूक पड़े जब, दु:ख की चुभती बरसातों में। जब मन के प्रकाशित कोनों में, स्याह अंधेरा जम जाए। जब प्रगति पथ पर जीवन रथ, खा हिचकोले, थम जाये। उमंग भरी इन आँखों में मेरी, यह दृश्य जो फिरा कभी- शिखरों पर बैठा मैं, गर्त में अभी गिरा,हाय!गिरा अभी तब तुम आना, प्रेरक बनकर, उम्मीदों की सौगात लिए। तब तुम आना, प्रथम किरण सी, मनमोहक प्रभात लिए। तुम दीपक बनकर, मुझको, जग में तम से लड़ना सिखला देना। कर सारथ्य जीवन रथ का, राह नई तुम दिखला देना। मेरे तुम पर विश्वासों को, साबित करना तुम सत्य सदा। सफल पुरुष की शक्ति नारी, सत्य रहे यह तथ्य सदा।। ---> लक्ष्मण बिश्नोई लक्ष्य