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नारी......

हर रोज कई तितलियों के पंख मरोड़े जाते हैं। हर रोज किसी हिरणी पर कुत्ते छोड़े जाते हैं । हर रोज कई कलियों को माली खुद मसल देता है। हर रोज किसी चिड़िया के अरमां गिद्ध कुचल देता है। रोज कहीं दामिनी को भेड़िये नोंच नोंच खा जाते हैं। देख अकेली कोयल कौए उठा चोंच आ जाते हैं। कहीं छह माह की बेटी की इज्जत से खेला जाता है। पहली कक्षा की बच्ची को धंधे में ठेला जाता है। नन्ही बिटिया अब बापू संग रहने से कतराती है। भाई का चेहरा देख कर भी मन ही मन घबराती है। नारी को वस्तु बतलाने का जतन रोज होता जाता है। स्त्री पूजा वाली संस्कृति का पतन रोज होता जाता है। जहाँ द्रोपदी के चीर हरण पर महाभारत हो जाती थी। और सीता के अपहरण पर लंका गारत हो जाती थी। जहाँ पद्मावती न दिखलाने को रतनसिंह अड़ जाते थे। अस्मिता की रक्षा खातिर खिलजी से लड़ जाते थे। उस भारत में ये हाल कि दुष्कर्मियों का राज हुआ। बेटी मार लटकाने वालों के सिर मुखिया का ताज हुआ। नेताओं को परोसी बेटी मुट्ठी कस कर रह जाती है। लोकलाज के नाम सारे कुकृत्यों को सह जाती है। ऐसे हालातों में भी प्रशासन कुछ नहीं कर पाता है। इन लोगों का रौ