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नव भारत

उमंग,उत्साह और स्फूर्ति,जन-जन में सृजित करें। चलो युवानों, वीर जवानों ! नव भारत निर्मित करें। हे मतवालों, हिम्मतवालों, नव भारत निर्मित करें। विवेकानंद सा तप हमीं है,गुरू नानक सा जप हमीं है। गांधी की अहिंसा भी हम हैं,प्रतिशोध की हिंसा भी हम हैं। मीरा जैसी भक्ति हम हैं,हनुमान सी शक्ति हम हैं। देवदत्त,पांचजन्य भी हम हैं,महाप्रभु चैतन्य भी हम हैं। हम पतंजलि के योग ध्यान हैं,गौतम बुद्ध का कैवल्य ज्ञान हैं। हम वीर शिवा-से बलशाली हैं,जगदम्बा,दुर्गा,महाकाली हैं। कृष्ण कन्हैया लाल हमीं हैं,दशानन का काल हमीं हैं। भगवद् गीता के ज्ञाता हम हैं,नव भारत निर्माता हम हैं। आदर्श हमीं देते आए हैं,नाव हमीं खेते आए हैं। फिर क्यों छा रही निराशा, उत्साह हीनता और हताशा। क्यों सोए हो,निराश पड़े हो, हिम्मत करो, उठ खड़े हो। पूरे करें स्वप्न तिलक के, कोई ना सोये रो बिलख के, प्रताप शिवा सा स्वाभिमानी, बनें हर इक हिन्दुस्तानी। बनें फिर से जगद्गुरू हम, गौरवमयी वर्तमान बनाएं। गंगा जमुनी तहजीब वाला, प्यारा हिन्दुस्तान बनाएं। उज्ज्वल भविष्य के निर्माण में,अपना सर्वस्व अर्पित करें। चलो युवानों, वीर जवानों!नव भारत न

नारी......

हर रोज कई तितलियों के पंख मरोड़े जाते हैं। हर रोज किसी हिरणी पर कुत्ते छोड़े जाते हैं । हर रोज कई कलियों को माली खुद मसल देता है। हर रोज किसी चिड़िया के अरमां गिद्ध कुचल देता है। रोज कहीं दामिनी को भेड़िये नोंच नोंच खा जाते हैं। देख अकेली कोयल कौए उठा चोंच आ जाते हैं। कहीं छह माह की बेटी की इज्जत से खेला जाता है। पहली कक्षा की बच्ची को धंधे में ठेला जाता है। नन्ही बिटिया अब बापू संग रहने से कतराती है। भाई का चेहरा देख कर भी मन ही मन घबराती है। नारी को वस्तु बतलाने का जतन रोज होता जाता है। स्त्री पूजा वाली संस्कृति का पतन रोज होता जाता है। जहाँ द्रोपदी के चीर हरण पर महाभारत हो जाती थी। और सीता के अपहरण पर लंका गारत हो जाती थी। जहाँ पद्मावती न दिखलाने को रतनसिंह अड़ जाते थे। अस्मिता की रक्षा खातिर खिलजी से लड़ जाते थे। उस भारत में ये हाल कि दुष्कर्मियों का राज हुआ। बेटी मार लटकाने वालों के सिर मुखिया का ताज हुआ। नेताओं को परोसी बेटी मुट्ठी कस कर रह जाती है। लोकलाज के नाम सारे कुकृत्यों को सह जाती है। ऐसे हालातों में भी प्रशासन कुछ नहीं कर पाता है। इन लोगों का रौ

Vijay : The Street Child (Story of an Orphan Boy)

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छुट्टियों में कुछ नया करने का जोश, अनाथ विजय की कहानी, 80 रूपए की डिजिटल कैसेट, दोस्त के दोस्त से उधार लिया कैमरा, एंड्राॅईड में रिकार्ड की गई आवाज और घर पर की गई एडिटिंग। कुछ इस तरह बनी यह शाॅर्ट फिल्म। अपनी तरफ से पहला प्रयास था तो ज्यादा उम्मीदें तो मैंने रखी नहीं थी। खैर, जैसी भी बनी है, आपके सामने है। देखिए, राय दीजिए, अच्छी लगे तो शेयर भी कीजिए। शायद किसी के दिल पर असर कर जाए। :)

बागी होती बंदूकें

कैसे गाऊँ जैजैवन्ती,दरबारी और मल्हार को। कैसे गाऊँ बसंत बहारें, कैसे गाऊँ श्रृंगार को। यहां गांवों में रोते दिखते झुग्गी छप्पर झोंपड़ियाँ। सूखे कांटे जैसे चेहरे, भूख से ऐंठी अंतड़ियाँ।। पेड़ पर लटकी लाशें दिखती भूमिपुत्र किसानों की। एक तिहाई जनता भूखी, मोहताज दानें दानों की। दूर देशों में छुपाई जाती कालेधन की संदूकें। इन्हीं कारणों से वतन में बागी होती बंदूकें। ऐसे हालातों में शब्दों में प्रीत नहीं ला सकता मैं। शोकसभा में श्रृंगार के गीत नहीं गा सकता मैं।। मैंने भारत माता के दिल के छाले देखें हैं। बुद्धिजीवियों की जुबान पर लटके ताले देखें है। मैंने सिंहासन दरबारों को निष्ठुर होते देखा है। वीर शहीदों की रूहों को छुप छुप रोते देखा है। जहर बोती सियासत की कैसे मैं जय कार करूं। हत्यारों को सिंहासन पर कैसे मैं स्वीकार करूं। मैं युवाओं को इंकलाब की राग सिखाता जाऊँगा। धवल खादी के दामन के दाग दिखाता जाऊँगा। देशद्रोहियों के वंदन की रीत नहीं ला सकता मैं। शोकसभा में श्रृंगार के गीत नहीं गा सकता मैं। >> लक्ष्मण बिश्नोई "लक्ष्य"

अब इंकलाब जरूरी है

चीख चीख रोता है मेरा दिल भारत के हालातों पर। मेरी कलम नहीं लिख पाती गीत प्रेम मुलाकातों पर। मैंने भारत माता को अक्सर रोते हुए देखा है। और वतन की सरकारों को सोते हुए देखा है। सरकारें जो पूरे भारत वर्ष की भाग्य विधाता है। सरकारें जो संविधान की रक्षक और निर्माता है। सरकारें जो वतन की हिफाजत खातिर बुनी गई। सरकारें जो जनता हेतु जनता द्वारा चुनी गई। सरकारें जो संरक्षक है देश में लोकतंत्र की। सरकारें जो शिक्षक है कत्र्तव्यों के मंत्र की। सरकारें जो जनता के सेवक का पर्याय है। सरकारें जो उम्मीद है, आशा है, न्याय है। सरकारें जो परिभाषा है वतन के विकास की। सरकारें जो अहसास है भरोसे और विश्वास की। सरकारें जो सच्चाई और देशप्रेम की मिसाल है। सरकारें जो अराजक लोगों के लिए महाकाल है। आज वतन में वही सरकारें गुण्डागर्दी करती है। रक्षक ही भक्षक बन बैठे, जनता इनसे डरती है। खादी और खाकी दोनों ही अब मर्यादा से दूर हुए। चरित्रहीन नेता बन बैठे ,दौलत के नशे में चूर हुए। जो नेता संसद में देश की इज्जत उछाला करते है। और देश की आंखो में अक्सर मिर्च डाला करते है। भोले भाले लोग यहां के भा

अब इंकलाब जरूरी है

सिसक सिसक कर रो रही है मेरी भारत माता आज। बिलख बिलख कर रो रहे हैं संविधान निर्माता आज। तड़प तड़प कर रोता होगा गांधी सुभाष का दिल भी आज। चीख चीख कर रोते होंगे भगतसिंह,बिस्मिल भी आज। रोती होगी गंगा जमना,रोते कश्मीर-हिमालय आज। रोते होंगे मंदिर मस्जिद,रोते सभी देवालय आज। रोती होगी कन्याकुमारी,रो रही गौहाटी आज। रो रहा है मरू प्रदेश भी,रो रही चैपाटी आज। आज देश में चारों ओर गुण्डों का प्रशासन है। और जूती की नोक पर पड़ा हुआ अनुशासन है। आज शास्त्री की पीठ में छुरी भोंक दी जाती है। और संसद की आंखो में मिर्च झोंक दी जाती है। बहुत सह लिया हम लोगों ने, अब बदलाव जरूरी है। चुप रहने से काम न चलेगा, अब इंकलाब जरूरी है। आज संसद चला रहे है गुण्डे तस्कर और डाकू। हाथापाई, मारपीट, छीनाझपट्टी और चाकू। कोई स्पीकर की टेबल का माईक उखाड़ चला जाता है। और सदन की सम्पत्ति के कागज फाड़ चला जाता है। संसद स्थगित करने को अब बहाने बनाए जाते है। पानी की तरह जनता के रूपए बहाए जाते है। राजनेता बर्बाद कर रहे है मेरे भारत देश को। और बदनाम किया जा रहा है खादी वाले वेश को। आज वतन के लोग यहां के नेताओं से त्रस्त है। लेकिन युवा पीढी